मार्कण्डेय पुराण
में वर्णित देवी महात्म्य अर्थात दुर्गासप्तशती
मार्कण्डेय पुराण में वर्णित देवी महात्म्य अर्थात
दुर्गासप्तशती के आठवे अध्याय के अनुसार श्री काली देवी की उत्पति जगत्जननी अम्बिका
के ललाट से हुई है !
जिसकी कथा इस प्रकार है :
जिसकी कथा इस प्रकार है :
एक समय की बात है ! शुम्भ निशुम्भ दो महापराक्रमी असुरो ने
अपने बाहूबल से सभी देवताओ को पराजित कर दिया ! उन्होंने देवराज इंद्र से सभी
अधिकार छीन लिये ! तब सभी देवता अपनी अपने प्राणों की रक्षा के लिये इधर-उधर भटकने
लगे ! इससे पहले भी जब महाअसुर महिषासुर ने इंद्र लोक पर अपना
अधिकार कर लिया था ! तब देवी ने उसका वध कर के कहा की जब कभी भविष्य में कष्ट में
देवता देवी की सहायता चाहेगे ! तो वह तुरन्त प्रकट हो कर उनके दुःख दूर करेगी !
देवी के इस आश्वासन का ध्यान कर के सभी देवता देवी की सतुति करने लगे ! तब देवी ने
प्रकट हो कर शुम्भ और निशुम्भ के दो शक्तिशाली दूत चंड और मुंड को देवी ने युद्ध
में मर डाला ! देवी ने बहुत सी असुरी सेना को मार डाला ! ये सुन कर शुम्भ ने अपनी
सम्पूर्ण सेना को युद्ध क लिये कुच करने का आदेश दे दिया ! ऐसी आज्ञा देकर शुम्भ
कई हज़ार महासेना को अपने साथ ले कर युद्ध के लिये चल पड़ा ! सेना को आते देख देवी ने अपने धनुष की टंकार से पृथ्वी और
आकाश को गुज़ा दिया ! तब सिंह ने भी गर्जना की और चंडिका ने अपना घंटा बजा कर दूना
शब्द कर दिया ! असुरी सेना ने सिंह और देवी को चारो तरफ से घेर लिया ! इस समय
देत्यो का संहार करने और देवताओ का कष्ट निवारण के लिये ! ब्रम्हा, शिवजी, विष्णु,
कार्तिकेय और अन्य देवताओ के शरीर से जो शक्तियां उत्पन हुई, उनका वर्णन इस प्रकार
है ! ब्रम्हा की शक्ति, रुद्राक्ष की माला धारण किए हुए, कमंडल
लेकर ,हंसयुक्त विमान में आई ! इसलिए
उस शक्ति का नाम ब्रमाणी हुआ ! शिवजी की शक्ति ,वृषभ पर सवार हो कर त्रिशूल हाथ में लर
कर,महानाग का कंकण और चन्द्ररेखा से सुशोभित होकर आई ! स्वामी कार्तिकेय
की शक्ति उन्ही के समान स्वरूप धारण कर के , मोर पर बैठकर , शक्ति के लिये असुरो
से युद्ध करने आई ! भगवान विष्णु की शक्ति ,गरुड़ पर बैठकर ,शंख , चक्र ,गदा
,धनुष और खडंग ले कर असुरो से लड़ने आई ! वराह की शक्ति, वाराही सुंदर शरीर को धारण किए हुए आई ! नृसिंह की शक्ति ,उन्ही के समान वहा आई ! जिसके केश हिलने
से सम्पूर्ण तारागण हिलने लगता था ! इन्द्र की शक्ति ऐन्द्री ऐरावतं पर सवार हो कर , हाथ में
बज्र को लिये युद्ध करने आई !
फिर महादेव जी ने सभी
देव-शक्तियों और देवी से कहा कि अब तुम असुरो का विनाश करो ! तब देवी के शरीर से
अत्यंत उग्र शरीर लिए हुए ! चंडिका प्रकट हुई ! जिनकी गर्जना सेकड़ो शेरो के समान
थी ! अपराजिता देवी ने शंकर जी को अपना दूत बना कर शुम्भ और निशुम्भ के पास भेजा !
और कहा कि यदि शुम्भ और निशुम्भ खुद को जीवित रखना चाहते हो तो , तुरंत पाताल लोक
को चले जावे ! इंद्र का राज्य इन्द्र को दे कर ! देवगणों को यग का भाग भोगने दे !
देवी ने शिव को अपना दूत बना कर भेजा था इसलिए देवी को शिवदूती भी कहा जाता है !
देवी कि बातो को सुन कर राक्षश राज अत्यंत क्रोध में भर कर देवी पर , बानो व्
अस्त्र–शास्त्र से प्रहार करने लगे ! मगर देवी ने, असुरो दवारा चलाये गए
अस्त्र-शस्त्रों को खेल ही खेल में काट
दिया ! चंडिका ये देख , अपने त्रिशुल और खड़क से असुरो का संघार करने लगी !
ब्राह्मणी देवी जहा भी जाती , वही अपने कंडल का जल छिड़क कर, असुरो का बल,वीर्य और
पराक्रम को नष्ट कर देती ! वैष्णो देवी ने
चक्र और कौमारी देवी ने शक्ति से शत्रुओं का विनाश आरम्भ कर दिया ! ऐन्द्री देवी
के बज्र प्रहार से सेकड़ो असुरो के हाथ-पैर टूट कर गिर गए ! नरसिंह देवी ने अपने
नखो से शत्रुओ को चीर-फाड़ कर चबाना शरू कर दिया ! शिवदूती के अट्टहास से ही कितने
असुर मुर्छित हो कर पृथ्वी पर गिर गए ! ये सब देख कर असुरी सेना भागने लगी ! तब
उनका सेनापति रक्तबीज बड़े क्रोध से देवी को मारने के लिए आगे आया ! रक्तबीज को
ब्रह्मा जी से वरदान था कि उसकी एक बूंद रक्त पृथ्वी पर गिरते ही ! उसी के समान बल
वाला राक्षस पैदा हो जाता था ! रक्तबीज को आता देख ऐन्द्री देवी ने उस पर बज्र से
प्रहार किया ! बज्र का प्रहार होते ही बहुत सा रक्त , पृथ्वी पर गिरा ! जितनी बूंद
रक्त पृथ्वी पर गिरा ! उतनी ही संख्या में रक्तबीज उत्पन हो गए ! देवी के प्रहार
से जितना भी रक्त गिरता उतने ही रक्तबीज उत्पन हो जाते ! पूरी पृथ्वी रक्तबीज असुर
से कापने लगी ! ये सब देख कर देवतागण भयभीत हो गए ! देवताओ को भयभीत देख कर चंडिका
को क्रोध आ गया ! क्रोध के कारण देवी का मुंह काला पद गया ! उनकी भोहे टेढ़ी हो गई
! तब उनके ललाट से काली देवी उत्पन हुई ! तब चंडी ने काली से कहा कि, जब मै
रक्तबीज पर प्रहार करू तो तुम इसके रक्त को पृथ्वी पर मत गिरने देना ! माँ काली ने
रक्तबीज के रक्त का पीना शरू कर दिया ! काली देवी रक्तबीज के रक्त को पृथ्वी पर गिरने
से पहले ही, खप्पर में ले कर ,उसको पी जाती ! इस प्रकार शस्त्रों के प्रहार से,
रक्त-रहित हो कर रक्तबीज पृथ्वी पर गिर गया ! इस प्रकार रक्तबीज के गिरते ही
देवगणों में खुशी कि लहर आ गई ! और देवी असुरो का रक्तपान करते हुए ! नुत्य करने
लगी !
श्रीकाली उत्पति समाप्त !
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